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दीपावली पर्व - दर्शन एवं शिक्षण

अंतर्ज्योति जागरण का पर्व- दीपावली, मूलतः पांच दिवसीय पर्व की एक सुंदर एवं प्रेरणादाई श्रंखला है जिसका शुभारंभ आरोग्य के देवता धनवंतरी देव के आवाहन पूजन के साथ किया जाता है।


आइए पहले इन पांच दिनों के पांच पर्वों को समझें।


त्रयोदशी को धनतेरस (धनवंतरी देव का पूजन) अर्थात शारीरिक मानसिक एवं पारिवारिक आरोग्य की उपासना।

समुद्र मंथन में अमृत कलश के साथ चौदह रत्नों में प्रकट हुए धनवंतरी देवता समृद्धि दाता हैं। धनतेरस में धन का अभिप्राय मात्र पैसा ही नहीं, वरन स्वस्थ शरीर, स्वच्छ मन व सभ्य परिवार है।


दीपावली से 1 दिन पहले नरक चतुर्दशी अथवा रूप चतुर्दशी अथवा छोटी दीपावली नामक पर्व मनाया जाता है। एक कथा के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने इस दिन नरकासुर नाम के राक्षस का वध किया था और 16,108 रानियों को उसके बंधन से मुक्त कराया और उनका यथोचित सम्मान उन्हें लौटाया था। हनुमान जयंती के माध्यम से हनुमान जी का स्मरण भी इसी तिथि को किया जाता है।


अमावस्या तिथि को दीपावली का पावन पर्व भगवान श्री राम की अयोध्या वापसी का, उनके स्वागत का पर्व है। कहते हैं कि भरत जी ने भगवान राम के स्वागत में सूर्य से प्रार्थना की कि वह चौबीसों घंटे प्रकाशित रहें और अस्त न हो किंतु भगवान सूर्य ने अपने नियम की मर्यादा में बंधे थे। इसके पश्चात यही प्रार्थना उन्होंने चंद्रमा से की कि वह अपनी चांदनी से पृथ्वीलोक को, अयोध्यापुरी को पूरी तरह प्रकाशित कर दें किंतु चंद्रमा भी अमावस्या के कारण अपने बंधन को तोड़ नहीं पाए। भरत जी का मन उदास था, आंखों से आंसू बह रहे थे, तब पृथ्वी माता ने उनसे कहा कि आप मेरी माटी के दीए बनाकर पूरी अयोध्यापुरी को प्रकाशित कर दीजिए। मेरी माटी के दीए जब तक आप चाहेंगे तब तक जगमगाते रहेंगे। भगवान भरत ने माता सीता, लक्ष्मण जी, राम जी सभी के स्वागत में पूरी अयोध्यापुरी को दीपकों के प्रकाश से प्रज्वलित कर डाला।

इसी दिन तीर्थंकर महावीर जी का देहावसान भी हुआ था। स्वामी रामतीर्थ एवं दयानंद सरस्वती जी जैसे महान संतों ने भी अपनी स्थूल देह का त्याग दीपावली की अमावस्या तिथि को ही किया था।

इसी दिन जिज्ञासु नचिकेता को यम भगवान ने ब्रह्मविद्या का ज्ञान की अंतिम वल्ली का उपदेश दिया था।


कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को दीपावली के अगले दिन अन्नकूट अथवा गोवर्धन पूजा का विधान है। भगवान कृष्ण ने इस दिन गोवर्धन पर्वत की महिमा को स्थापित कर मनुष्य को प्रकृति से जुड़ने का शिक्षण प्रदान किया था। गौ माता के गोबर से घर को लीपकर उसके सात्विक प्रभावों से अपने गृहस्थ के आभामंडल को शुद्ध करने का और अन्न पूजन का पर्व है गोवर्धन अर्थात अन्नकूट। प्रकृति और मानवता के परस्पर संबंध को प्रकट करता है यह पर्व और साथ ही नेक कार्य हेतु जन समुदाय के एकत्रीकरण एवं संघ शक्ति की महिमा को भी स्थापित करता है।


दूज की तिथि समर्पित है यम भगवान को। इसे चित्रगुप्त जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। यम द्वितीया के इस पर्व पर बहिन यमुना अपने भाई यम भगवान के प्रति अपना प्रेम आभार अभिव्यक्त करती है। यदि साधक पूर्व के 4 दिनों को सारगर्भित होकर जीएगा तो चित्रगुप्त का लेखा जोखा भी संभालेगा और यमलोक की गति भी। यम का एक दूसरा अर्थ है अनुशासन। साधक जीवन में अनुशासन के गरिमा को स्थापित करने की आवश्यकता यहां नहीं है। यदि आप इस संदेस को पढ़ रहे हैं तो आपका अंतस इस बात के महत्व को भलीभांति समझता है।



पर्व श्रंखला का दर्शन

जीवन रूपी अयोध्या पुरी में भगवान राम को निमंत्रण देने हेतु साधक को शरीर, मन और संबंधों को सुदृढ़ बनाना होगा, प्रकृति के साथ सुंदर समन्वय स्थापित करना होगा, जीवन में प्रेम और सहकार को स्थान देकर उसे स्वर्गमई बनाना होगा (नरक बनने से बचाना होगा); और इन सबका हेतु है- भक्ति। इसी सीता रूपी भक्ति से वैराग्य रूपी लक्ष्मण, भरत जैसा भ्रातृ प्रेम और समर्पण रूपी हनुमान जन्मेंगे और राम जी को अयोध्या लाएंगे। देवत्व के जागरण से भीतर में निहित सहस्त्रों शक्तियां अपना आवरण हटाकर कृष्णमई होंगी। दीपक पात्रता, स्नेह, तपशीलता और समर्पण का शिक्षण देता है और एक साधक में ये गुण विकसित हुए बिना राम, कृष्ण, महावीर, आदि का प्राकट्य संभव नहीं।


शुभ दीपावली।

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